मंगलवार, 21 अगस्त 2012

प्यार का सपना,,,,

प्यार का सपना,

शाम होते उनका इन्तजार होता है
तकरार में भी उनका प्यार होता है

नीचे झुका लेते है हम अपनी नजरे,
सपने में जब उनका दीदार होता है

अश्क जब आते है उनकी आँखों में
नजारा बिलकुल झील जैसा होता है,

रख लेते जब उन्हें अपने दामन में
तो दामन सोने सा सुनहरा होता है,

माँझी की नही जरूरत होगी हमको
उनका साथही किनारे जैसा होता है,

शाहजहाँ-मुमताज ताज महल जैसा
चाँद-सितारों सा अपना प्यार होता है,

dheerendra bhadauriya,


सोमवार, 18 जून 2012

न जाने क्यों,,,,,


न जाने क्यों,

जानकर भी, कि
गुजर रहा हूँ,
अनजान राहों में मै!
न जाने क्यों-
खुद से अनजान
बन जाता हूँ,मै
सोचता हूँ कि-
एक अलग
पहचान बनाऊ
इस दुनिया में मै-
मगर,जब जाता हूँ
दुनिया की उस भीड़ में
न जाने क्यों-?
खुद अपनी पहचान.
भूल जाता हूँ मै!


dheerendra,"dheer"

शुक्रवार, 1 जून 2012

प्यार हो गया है ,,,,,,


प्यार हो गया है,

देखा उनको तो खुद से एतबार खो गया है,

पहली नजर में ही उनसे प्यार हो गया है!


चुन्नी गले में लपेटे, मासूम सा चेहरा,

भोली सी चंचलता पे दिल निसार हो गया है!


तुम्हें देख कर ही जाना प्यार क्या है,

सूने दिल मे प्यार का विस्तार हो गया!


तुम्हे पता हो न हो मेरे हमदम,

तुम्हारी याद ही मेरा संसार हो गया है!


काश कह पाती मुझसे तू तेरा फैसला,

लेकिन अब तो धीर सिर्फ इन्तजार हो गया!

dheerendra,"dheer"

गुरुवार, 17 मई 2012

बदनसीबी,.....




बदनसीबी

मुझे जिन्दगी ने रुलाया बहुत है,
मेरे दोस्त ने आजमाया बहुत है!

कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
मेरा घर गमो से सजाया बहुत है!

हटा लो ये आँचल मुझे भूल जाओ,

सर पे बदनसीबी का साया बहुत है!

घर तो क्या मै ये शहर छोड़ जाऊं,
अजीजो ने मुझको समझाया बहुत है!

बरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
धीर ने खोयाहै कम,गम पाया बहुत है!

dheerendra,"dheer"

शुक्रवार, 4 मई 2012

प्रिया तुम चली आना.....


प्रिया तुम चली आना
थक जाए जब नैन
तुम्हारी राह तकते तकते
निश दिन
पाए न चैन मनुवा
काहू ठौर पलछिन
सूना हो आँगन
सूनी हो गालियाँ
मुरझाई हो सब
आशा की कलियाँ
तब चली आना प्रिया तुम
ओढ़ धानी चुनर
नेह दर्पण में संवर
इठलाती, बलखाती
इन नैनों के द्वार,


DHEERENDRA,"dheer"

रविवार, 8 अप्रैल 2012

रूप तुम्हारा...


रूप तुम्हारा

प्रिय
तुम्हारा रूप
चंदा की चाँदनी सा,
अनूप!
अमावस का पर्याय बने
तुम्हारे केश
सज गई तारों की बिंदिया
माथे के देश!
कमल-पांखुरी से है दो नयना
लूट ले गए मन का चयना
गाल गुलाबी अधर है लाल,
देह चाँदनी ऐसी,
जैसे कामरूप का जाल!
हँसी तुम्हारी प्यारी इतनी
जैसे धूप लगे अगहन की
रूप अनूठा लगे
"धीर"को
बात कहूँ मै मन की!

DHEERENDRA,"dheer"

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

दो क्षणिकाऐ,...


दो क्षणिकाऐ,

कर्म-रहस्य,
यश
कर्म की प्रेरणा है,
उपलब्धि नही!
फल
कर्म की संगति है
परिधि नही
प्रेम
कर्म की साधना है,
नियति नही!


प्रमाण,

संयम का कष्ट
कितनी संतुष्टि देता है?
और
संतुष्टि का संयम
कितना कष्ट देता हैं?
क्या
कष्ट की भी संतुष्टि होती है
हां
मेरा जीवन
इसका प्रमाण है!

DHEERENDRA"dheer"

गुरुवार, 29 मार्च 2012

बस! काम इतना करें....


बस! काम इतना करें,

अपने गम को और कम कितना करें
शेष तुम कहो हम कम उतना करे,

है पता मुझको तेरे रूठ जाने का
प्यार भी आखिर रोज कितना करें,

पाप-पुण्य का होता कोई माप नही
तौल-धरम का हिसाब ऐसे में कितना करें,

बात नही अगर कोई छुपाने की
जमाने से डर फिर कितना करें,

तुम हमे भूलो हम तुम्हे भूलें
हो सके तो बस! काम इतना करें,


DHEERENDR,:"dheer"

शनिवार, 17 मार्च 2012

रिश्वत लिए वगैर....

रिश्वत लिए वगैर...

कविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
हम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर!

श्रोता विहीन मंच को श्री हीन समझिए,
त्यौहार मुहर्रम हो,जैसे ताजिऐ बगैर!

क्या क्या हुआ आज तक कविता के नाम पर
गजलें नही चलेंगी अब काफिऐ बगैर!

उत्तर की प्रतीक्षा में है एक प्रश्न यह भी
कवि क्यों नही सुनते कविता,पिए बगैर!

जीवन के हर क्षेत्र में रिश्वत है जरूरी
श्रोता ही फिर सहे क्यों "धीर"रिश्वत लिये बगैर!

DHEERENDRA,"dheer"

गुरुवार, 8 मार्च 2012

फागुन...

- = फागुन = -

माथे पर रोली सा फागुन
रंगों की झोली सा फागुन
आँचल में बेताबी बांधें,
दुल्हिन की ओली सा फागुन,!

धानी-धानी चुनर जैसा
पनघट पर पायल स्वर जैसा,
सोंन कलश सा छलक रहा है
मदमाते से केशर जैसा,
फुलवा झरे गुलाल फाग सा
कोयल की बोली सा फागुन,!

प्यासी मछली के तन जैसा
मर्यादा की महकम जैसा,
पूजा के आले सा महका
दरवाजे तक चन्दन जैसा,
चौक पूरती है पुरवायी
आया रांगोली सा फागुन,!

पलछिन बहके तेवर जैसा
प्यारा छोटे देवर जैसा,
एक तरंग सा छाया तन पर
इन्द्र धनुष के जेवर जैसा,
भाभी लगे नवोढा चंदा
चंदा की डोली-सा फागुन,!


DHEERENDRA,"dheer"

शनिवार, 3 मार्च 2012

डिस्को रंग...


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डिस्को रंग,

श्री कृष्ण को
गोपियों ने ज्यों ही
होली पर
रंग और गुलाल से नहलाया
अपना स्वरूप देख
उन्हें बेजा ताव आया
तुनककर बोले
तुम पक्के राग रंग छोड़
ये फीके रंग क्यों डाल रही हो?
सच सच बताओ,
ये किस दिन का बदला
आज निकाल रही हो-?"
एक गोपी ने हँसकर कहा-
'प्रभु, जी अब कहाँ रहे,
पक्के राग और रंग
और कहाँ, पक्के नाच-गाने
अब तो बस, "फ़िल्मी-युग" आया है!
प्रभुजी, आप नाराज हों "धीर" धरे
इसलिए हमने भी आपको-
"डिस्को रंग" लगाया है!!

DHEERENDRA,"dheer"

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

फागुन लहराया...



फागुन लहराया

अखियन में
फागुन लहराया!
शरमाई
फूलो में पंखुरियाँ
अलसाई
रतनारी आँखरियाँ!
अधरों पर
अनव्याहा छंद मुखर आया
चहक रही
तितली सी चितवन,
ठुमकी पायल
खनके कंगन!
भूला-सा एक नाम
सुधियों में आया!
अखियन में फागुन लहराया!
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----DHEERENDRA,"dheer"







शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

हुस्न की बात...

हुस्न की बात,

तुमको देखा है जब से आँखों ने
और कोई चेहरा नजर नहीं आता
तुम हर नजर का ख़्वाब हो,
हर दिल की धडकन हो
कैसे तारीफ करता तुम्हारे हुस्न की
तुम्हारा चेहरा तो किताबी है,
कहाँ से आया इतना हुस्न....
जबाब में वे मुस्करा दिए और बोले-?
कुछ तो आपकी मोहब्बत का नूर है
कुछ कोशिश हमारी है
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DHEERENDRA,

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

तुम्हें हम मिलेगें...


तुम्हें हम मिलेगें...

जिन्दगीं में हमेशा नए लोग मिलेगें
कहीं ज्यादा तो कहीं कम मिलेगें,
एतबार सोच समझ कर करना
मुमकिन नहीं हर जगह तुम्हें हम मिलेगें,

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dheerendra,

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

कितने हसीन है आप.....


कितने हसीन है आप


कितने हसीन है आप
खुद को दुनिया की नजरो से बचाया करो
आँखों में काजल लगाना काफी नही
गले में नीबू-मिर्ची भी लटकाया करो


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dheerendra