रविवार, 8 अप्रैल 2012

रूप तुम्हारा...


रूप तुम्हारा

प्रिय
तुम्हारा रूप
चंदा की चाँदनी सा,
अनूप!
अमावस का पर्याय बने
तुम्हारे केश
सज गई तारों की बिंदिया
माथे के देश!
कमल-पांखुरी से है दो नयना
लूट ले गए मन का चयना
गाल गुलाबी अधर है लाल,
देह चाँदनी ऐसी,
जैसे कामरूप का जाल!
हँसी तुम्हारी प्यारी इतनी
जैसे धूप लगे अगहन की
रूप अनूठा लगे
"धीर"को
बात कहूँ मै मन की!

DHEERENDRA,"dheer"

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

दो क्षणिकाऐ,...


दो क्षणिकाऐ,

कर्म-रहस्य,
यश
कर्म की प्रेरणा है,
उपलब्धि नही!
फल
कर्म की संगति है
परिधि नही
प्रेम
कर्म की साधना है,
नियति नही!


प्रमाण,

संयम का कष्ट
कितनी संतुष्टि देता है?
और
संतुष्टि का संयम
कितना कष्ट देता हैं?
क्या
कष्ट की भी संतुष्टि होती है
हां
मेरा जीवन
इसका प्रमाण है!

DHEERENDRA"dheer"