गुरुवार, 29 मार्च 2012

बस! काम इतना करें....


बस! काम इतना करें,

अपने गम को और कम कितना करें
शेष तुम कहो हम कम उतना करे,

है पता मुझको तेरे रूठ जाने का
प्यार भी आखिर रोज कितना करें,

पाप-पुण्य का होता कोई माप नही
तौल-धरम का हिसाब ऐसे में कितना करें,

बात नही अगर कोई छुपाने की
जमाने से डर फिर कितना करें,

तुम हमे भूलो हम तुम्हे भूलें
हो सके तो बस! काम इतना करें,


DHEERENDR,:"dheer"

शनिवार, 17 मार्च 2012

रिश्वत लिए वगैर....

रिश्वत लिए वगैर...

कविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
हम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर!

श्रोता विहीन मंच को श्री हीन समझिए,
त्यौहार मुहर्रम हो,जैसे ताजिऐ बगैर!

क्या क्या हुआ आज तक कविता के नाम पर
गजलें नही चलेंगी अब काफिऐ बगैर!

उत्तर की प्रतीक्षा में है एक प्रश्न यह भी
कवि क्यों नही सुनते कविता,पिए बगैर!

जीवन के हर क्षेत्र में रिश्वत है जरूरी
श्रोता ही फिर सहे क्यों "धीर"रिश्वत लिये बगैर!

DHEERENDRA,"dheer"

गुरुवार, 8 मार्च 2012

फागुन...

- = फागुन = -

माथे पर रोली सा फागुन
रंगों की झोली सा फागुन
आँचल में बेताबी बांधें,
दुल्हिन की ओली सा फागुन,!

धानी-धानी चुनर जैसा
पनघट पर पायल स्वर जैसा,
सोंन कलश सा छलक रहा है
मदमाते से केशर जैसा,
फुलवा झरे गुलाल फाग सा
कोयल की बोली सा फागुन,!

प्यासी मछली के तन जैसा
मर्यादा की महकम जैसा,
पूजा के आले सा महका
दरवाजे तक चन्दन जैसा,
चौक पूरती है पुरवायी
आया रांगोली सा फागुन,!

पलछिन बहके तेवर जैसा
प्यारा छोटे देवर जैसा,
एक तरंग सा छाया तन पर
इन्द्र धनुष के जेवर जैसा,
भाभी लगे नवोढा चंदा
चंदा की डोली-सा फागुन,!


DHEERENDRA,"dheer"

शनिवार, 3 मार्च 2012

डिस्को रंग...


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डिस्को रंग,

श्री कृष्ण को
गोपियों ने ज्यों ही
होली पर
रंग और गुलाल से नहलाया
अपना स्वरूप देख
उन्हें बेजा ताव आया
तुनककर बोले
तुम पक्के राग रंग छोड़
ये फीके रंग क्यों डाल रही हो?
सच सच बताओ,
ये किस दिन का बदला
आज निकाल रही हो-?"
एक गोपी ने हँसकर कहा-
'प्रभु, जी अब कहाँ रहे,
पक्के राग और रंग
और कहाँ, पक्के नाच-गाने
अब तो बस, "फ़िल्मी-युग" आया है!
प्रभुजी, आप नाराज हों "धीर" धरे
इसलिए हमने भी आपको-
"डिस्को रंग" लगाया है!!

DHEERENDRA,"dheer"